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एक मौक़ा देता हूँ तुम्हे / सुभाष राय

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तुम्हें, तुम जैसे तमाम लोगों को
मेरे सामने झुकना होगा, मेरा सम्मान करना होगा
तुम्हारी कई गुस्ताखियाँ नज़रअन्दाज़ कर चुका हूँ
तुमने मेरा कार्टून बनाया, मेरे ख़िलाफ़ कविताएँ लिखीं
मुझे ललकारा, मेरा पुतला जलाया

अदालतें, चुनाव आयोग, जाँच एजेंसियाँ
सबने लिखा मेरी सच्चाई का दस्तावेज़
तुमने अपनी फाइल चलाई, अदालत लगाई
और मुझे मौत की सज़ा सुना दी
मैंने तब भी माफ़ किया तुम्हें

मैंने वन्दे मातरम् का उद्घोष किया
अपने रास्ते चुनने की आज़ादी के नाम पर तुम‌ झुके नहीं
मैंने इतिहास से गुलामी मिटाने की बात की
तुम यवनों, आक्रान्ताओं के पक्ष में खड़े हो गए
मैंने गान्धी, अम्बेडकर, पटेल की बात की
तुमने मेरे चेहरे पर लिखा हिटलर, मुसोलिनी

मैं सबका कल्याण चाहता हूँ, तुम्हारा भी, तुम सबका
मेरी शरण में आओ, तुम्हारा योग-क्षेम वहन करूँगा
एक मौक़ा देता हूँ पूरी आज़ादी से सोचो और चुनो

मेरे पास हर तरह के तमग़े हैं
हर साइज के पिंजरे भी