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एक यात्रा के बारे में / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
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हम खोलते हैं दरवाज़े
बन्द कर देते हैं
पार करते हैं दरवाज़ों को
और यात्रा के अन्त में
कोई शहर नहीं होता
कोई बन्दरगाह नहीं होता
उतर जाती है गाड़ी पटरी से
जहाज़ डूब जाता है
और हवाई-जहाज़ टूट-फूट जाता है
बर्फ़ पर बन गया है नक़्शा एक
यदि मुझसे पूछा गया होता —
"चलोगे क्या फिर एक बार ?"
मैं उत्तर देता — "चलता हूँ !"
1958
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय