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एक रात जब मैं सफर में था / अरुण कमल
Kavita Kosh से
'देखा?
अभी जो खट से बजा
सियार होगा, कोई छोटा जानवर,
कट गया--'
टी० टी० ने गुलूबन्द के भीतर से कहा
मैं अकेला खड़ा था उसके पास घनी रात में
दरवाज़े के पास सामान लिये-
सोया था सारा शयनयान
'फिर बजा !
थोड़ा हल्का इस बार
सियार का बच्चा होगा या कुत्ता,
देखो फिर बजा खटाक-
बेचारा बैल खूँटा तुड़ाकर भागा होगा-
सबसे ज़्यादा जाड़े और बरसात में कटते हैं जानवर
आदमी भी सबसे ज़्यादा मरता है भादों और पूस में
मैं जानता हूँ सब इतना पुराना टी० टी० हूँ जंगली लाईन का-
अच्च ! चला गया !-'
'क्या हुआ?'
'कट गया ! आवाज़ वैसी ही थी
इतनी रात में निकला था लकड़ी चुनने !'
'और कितनी दूर है मेरा स्टेशन ?'
मैंने थक कर पूछा और बक्स पर बैठ गया !