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एक रात / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अँधियारे जीवन-नभ में
बिजुरी-सी चमक गयीं तुम !
सावन झूला झूला जब
बाँहों में रमक गयीं तुम !
कजली बाहर गूँजी जब
श्रुति-स्वर-सी गमक गयीं तुम !
महकी गंध त्रियामा जब
पायल-सी झमक गयीं तुम !
तुलसी-चौरे पर आ कर
अलबेली छमक गयीं तुम !
सूने घर-आँगन में आ
दीपक-सी दमक गयीं तुम !