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एक रोज़ बदल जाएँगे वे / गीताश्री
Kavita Kosh से
वे जो रोज़ चहक कर करते हैं बातें
जिनकी हँसी में भरी है आत्मीयता की चमक
वे जो रोज़ पूछते हैं हालचाल
बदलने ही वाले हैं उनके सुर
उनके सुर को उबासी में बदलने का इन्तज़ार है
वे जो रोज़ हंँसी के छींटे फेंकते हुए गुज़रते हैं
उनकी मायूसी और उदासी बस टपकने ही वाली है
कि एक दिन सबकुछ बदल जाना है /
यह अपनापन / यह आत्मीयता/ यह उज्ज्वल हँसी / यह रुमानी ख़याल / यह स्नेहपूरित आँखें / सब एक दिन यकबयक बदल जाएँगी
कि इनमें नहीं होता स्थायी भाव
संचारी भाव इनमें कराता रहता है
अणु विस्फोट !
अकारण घटता नहीं कुछ
कुछ लोग तलाशते रह जातें हैं बदलाव का सबब
उधर
अपने मतलब और ज़रूरतो के हिसाब से
बदल जाता है मिजाज का मौसम
उसे नईं आमद के आखेट की प्रतीक्षा जो होती है।