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एक लड़की गुज़रती जा रही / रवीन्द्र दास
Kavita Kosh से
एक लड़की गुजरती जा रही
बीचो-बीच वाली सड़क से
बाज़ार के।
शायद कुछ खरीदने
शायद कुछ बेचने
बाज़ार में साथ-साथ है दोनों संभावनाएँ।
बाज़ार में कुछ लोग
जो देख रहे हैं अकेली लड़की को
बाज़ार में कुछ लोग
जो नहीं देख रहे अकेली लड़की को
जबकि कुछ देखकर अनदेखा कर रहे
अनदेखा किया जाना
नागवार गुजरता है अकेली लड़की को।
बाज़ार की सड़क
गोल घुमावदार है
अकेली लड़की उसी रास्ते बढ़ जाना चाहती है
आगे
घूम कर बार-बार
उत्तेजित हो जाती है अकेली लड़की
थकती नहीं
आगे निकल जाना चाहती है इस बार
अकेली लड़की.
कहीं सड़क के बीचो-बीच
सहमती है अकेली लड़की
कुछ इंकार करती है अचानक
मुस्कुराती है उसके बाद
निश्चित विश्वास के साथ बढ़ जाती है आगे
अकेली लड़की।