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एक लड़की चल रही है हाथ थामे हाथ में / प्रमोद तिवारी

मुस्कराती
गुनगुनाती
ज़िन्दगी के साथ में
एक लड़की
चल रही है
हाथ थामे हाथ में

वो कभी गोरी
कभी काली
कभी है सांवली
वो कभी भोली
कभी अल्हड़
कभी है बावली
वो कभी दिल में
महकती है
कभी जज़्बात में

मत समझ लेना उसे
कोई अनूठी हूर है
या कि चंदा की
बरसती
चांदनी का
नूर है
वो अकेले भीगती
छत पर खड़ी
बरसात में
सर पे रहती है
हमेशा
एक बदली की तरह
घूमती फिरती है पीछे
एक पगली की तरह
और फिर वो
रूठ जाती है
ज़रा सी बात में

आंख खोलूं
भोर में
फूलों सा
खिल जाती है वो
शाम को लौटूं
तो दरवाजे पे
मिल जाती हैवो
और फिर
तकिये पे सूरज
टांकती है
रात में