भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक लड़की / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


 
किसी ने कहा- नींव
एक लड़की को
बालश्रमिक बचपन दिखा।
किसी ने कहा- स्तम्भ
लड़की को प्रेमी का सम्बल दिखा।
किसी ने कहा- छत
लड़की को सिर पर माँ का हाथ दिखा।
किसी ने कहा- झरोखा
लड़की को प्रेम की खुशबू महसूस हुई।
किसी ने कहा- दरवाजा
लड़की को कोई विकल्प नहीं दिखा
किसी ने कहा- दीवार
लड़की को अपने और उसके बीच दीवार दिखी।
किसी ने कहा- चहार दीवारी
लड़की को सुरक्षा और घर नहीं दिखा।
दिखी केवल कैद हुई स्वतन्त्रता।
बात सही है कि दीवार न हो, तो कैसा घर?
लेकिन यह 'शब्द' सुरक्षा से अधिक
मन में नकारात्मक प्रश्न क्यों लाता है?
लड़की इन्हीं प्रश्नों में घिरी हुई
गर्मी के मौसम में पर्यावरण दिवस की रात
पूरे परिवार की रोटी सेंक चुकी है- चूल्हे पर।
धुआँ-धुआँ है सब, आँखों की छत टपक रही है।
लड़की आँखें मसलते हुए गुम है, चहार दीवारी में।





-0-