एक लोरी / रणजीत
सो जा!
ओ मेरी आत्मा के भूखे व्याकुल बच्चे
सो जा!
मेरे स्तन में दूध नहीं है
लेकिन
इसे काट मत
उस गुनाह की सज़ा न दे मुझको
जिसकी मैं जिम्मेदार नहीं हूँ
ले
अपने ही हाथों अफ़ीम की
गोली देती हूँ मैं तुझको
इसको खाकर
बेहोशी के अँधियारे में खो जा
निष्क्रिय हो जा!
ओ मेरी आत्मा के भूखे व्याकुल बच्चे
सो जा!
मत चिल्ला
मत चीख
न रो तू
इस खाई में
जिसमें हम बैठे हैं वर्तमान में
कौन सुनेगा तेरी चीखें?
कोई भी ऊँचाई तेरी आवाज़ों की
इसको लाँघ नहीं सकती है,
सो जा!
ओ मेरी आत्मा के दुर्दम आकुल बच्चे
सो जा!
तब तक सोया रह जब तक मैं
इस खाई में
एक बड़ी मीनार नहीं चुन लेती
वर्तमान से एक सामयिक
अनुचित ही चाहे
सम्बंध जोड़ कर
तेरे सारे आदर्शों को अलग छोड़कर
(हर खाई को जो मीनारों के मलबे से
भर देने का वचन लिए हैं)
वह ऊँची मीनार
कि जिस पर पाँव टिका लेने भर से
हर चीख अजाँ बन गूँज उठा करती है
ओ मेरी आत्मा के भूखे व्याकुल बच्चे
मुझे क्लेश मत दे
कचोट मत
सो जा!