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एक विद्यार्थी की आरजू / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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मेरे स्कूल मैं यह हमेशा दुआ करूं
अगले जनम में भी तिरा विद्यार्थी बनूं।

छोटे से मेरे पांव हों और रास्ता तिरा
बस्ता उठा के मैं तिरी जानिब चला करूं।

कण कण में तेरे इल्मो-अदब का निवास है
आंगन में तेरे इल्म के मोती चुना करूं।

उस्ताद साहिबान से इज्ज़त से आऊं पेश
सहपाठियों को याद हमेशा किया करूं।

तौफ़ीक़ यह अता करे मेरा ख़ुदा मुझे
अध्यापकों के क़दमों में हर दम झुका रहूं।

मेरे स्कूल मुझ को यह आशीर्वाद दे
जो रास्ता हो नेक मैं उस रास्ते चलूं।

अफ्स़र बनूं, खिलाड़ी बनूं या शहीदे-क़ौम
दम तेरी अज़्मतों का हमेशा भरा करूं।

लब मेरे वक्फ हों तिरी ता`रीफ़ के लिये
गुण गान मैं जहान में तेरा किया करूं।

मुझ पर निसार इल्मो-अदब की हों दौलतें
मैं फ़ख़्रे-अह्ले-दानिशो-इल्मो-हुनर बनूं।

होने से मेरे हर सू उजाला हो देश में
राहे-वतन में शम्अ की सूरत जला करूं।

रौशन करूं मैं नाम तिरा ऐ मेरे स्कूल
ऊंचा रहे मक़ाम तिरा ऐ मेरे स्कूल।