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एक विनय और कामना / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

247
ऐसे रंग घुलें जीवन में, मिट जाए हर पीर।
सुरभित साँसें गीत सुनाएँ, नभ में उड़े अबीर।
248
एक विनय और कामना, है मेरी रघुबीर।
चाहे कुछ ना दे मुझे, हर ले प्रिय की पीर।
249
पंछी तरसे नीर को, मानुस निर्मल प्यार।
ये दोनों मिलते नहीं, प्यासा यह संसार।।
250
तेरा दुख है छीलता, मुझको तो दिन -रैन।
नींद गई, सपने मरे, मन हरदम बेचैन।।
251
तेरी पीर पहाड़ -सी, मन पर भारी भार।
व्यर्थ हुईं शुभकामना, किस विधि हो उपचार।
252
जीवन के संग्राम में, हो ही जाती हार
पथ में जो मिलता नहीं, मुझको तेरा प्यार।
253
जीवन ने कैसा किया यह अलिखित अनुबंध।
 चुपके से तुम वन गए, इन साँसों का छंद।
 254
बोए थे उनके लिए, हमने सुरभित फूल।
शाप यहाँ किसने दिया, उगे नुकीले शूल।
255
माली तो काटे कभी फूलों वाली बेल ।
विधना काटे रात-दिन,कैसा है ये खेल ।
256
हमने चाहा था सदा सजे सुखों का बाग ।
भले लोग तब आ गए,हाथों में ले आग।
257
प्राणों ने कैसे किया, मुझसे यह अनुबंध।
साँस -साँस लिखने लगी, तेरी ही सौगंध।
258
अपनापन दुर्लभ यहाँ, कैसा है ये दौर।
एक तुम्हीं अपने मिले,दूजा है ना और
259
समय बड़ा बलवान है, नाजुक इसकी डोर।
पकड़े रहना तुम सदा, इसके दोनों छोर।
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