भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक व्यक्तिगत टोह / तेनजिन त्सुंदे
Kavita Kosh से
लद्दाख से
बस निगाह भर दूर है तिब्बत ।
उन्होंने कहा
दुमत्से की काली पहाड़ी से
यह तिब्बत है अब ।
मैंने पहली बार देखा
अपने मुल्क तिब्बत को ।
हड़बड़ी में छिपते-छिपाते
मैं टीले पर पहुँच गया ।
मैंने मिट्टी को सूंघा,
ज़मीन को कुरेदा
सूखी हवा को सुना
और सुना बूढ़े जंगली सारसों को ।
मुझे सीमा नज़र नहीं आई,
क़सम खा के कहता हूँ कुछ भी
फर्क नहीं था वहाँ
मैं नहीं जानता
मैं वहाँ था या यहाँ
मुझे नहीं पता था
मैं वहाँ था या यहाँ ।
लोग कहते हैं
क्यांग<ref>तिब्बत और लद्दाख के उत्तरी मैदानों में पाए जाने वाले जंगली गधे</ref> हर जाड़ों में आते हैं यहाँ ।
लोग कहते हैं
क्यांग हर गर्मियों में जाते हैं वहाँ ।
शब्दार्थ
<references/>