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एक शरारती कविता / कुमार विकल

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इन बुरे दिनों को हम

भविष्य में कैसे याद कर पाएँगे

और अपनी—अपनी डायरियों में इन्हें

किन शीर्षकों के अंतर्गत लिख पाएँगे?


ये दिन

जो हमने

शराब के अँधेरे में बिताए हैं


हमारी ज़िन्दगी में न जाने कहाँ—कहाँ से भटककर आए हैं.


अमितोज कहता है

इन दिनों के पीछे हर आदमी के अपने—अपने

कुमार विकल का हाथ है

मैं कहता हूँ नहीं

यह एक साज़िश है

जिसमें एक अनलिखी कविता का साथ है.


शौकीन कहता है

“बाई बदमाश हो रहा है.

कविता शब्द का ग़लत इस्तेमाल करके रो रहा है

अमितोज का क्या है

वह तो आजकल

लोकगीतों में गच रहा है

नागिन को कविता में रच रहा है.”


इसके बाद शौकीन

बाइ की ग़लत शब्दों वाली

कविता पढ़कर रो पड़ता है

ख़ुदा जाने उसका कुता कहाँ जा फँसता है.


लोकू खिड़की से बाहर

एक भटकता बादल देखकर कहता है

बाई लोगो! कविता और कुत्ते की बात छोड़ दो

पानी बरसने वाला है

अब सब कुछ धुल जाएगा

हर आदमी का आकाश खुल जाएगा.

हर मित्र—मंडली की एक निजी भाषा होती है जिसे मैंने कविता की भाषा में बदलने का प्रयोग किया है. उदाहरणार्थ, जब पंजाबी कवि अमितोज अपनी किसी दोस्त लड़की से मिलने जाता है,तो स्थिति की गोपनीयता को बनाए रखने के लिए दोस्तों से कहता है कि मै कुमार विकल से मिलने जा रहा हूँ.शौकीन और लोकनाथ (लोकू) पंजाबी के प्रमुख युवा कवि हैं. मुझे वे बाई अर्थात बड़ा भाई कह कर संबोधित करते हैं— कुमार विकल