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एक शाम दो दोस्तों की बातचीत / प्रभात रंजन
Kavita Kosh से
"दोस्त ! क्यों ये आँखें नम?
अच्छा
कैसी है, कहाँ है, बताओ जरा
भई, हमसे नहीं देखा जाता
तुम्हारा यह गम"
"नहीं, दोस्त ! घर में आटा ख़तम
कहाँ आँखें नम?
यूँ ही कुछ कोयला-वोयला पड़ गया होगा-
"अच्छा यार, मिलेंगे फिर
इस वक़्त फ़ुरसत है कम"
(वाह रे वाह आदम !)