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एक शायर ने क्या बना डाला / गौरव त्रिवेदी
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एक शायर ने क्या बना डाला,
इश्क़ को वाक़या बना डाला,
इक ख़ुदा के बनाए लोगों ने,
अपना अपना ख़ुदा बना डाला,
लोग सुनते हैं वाह करते हैं,
हमने ग़म को मज़ा बना डाला
उसने आँखों मे डालकर आँखें,
आँखों को आईना बना डाला
मैने उसतक ही ख़्वाहिशें रखकर
ख़्वाब का दायरा बना डाला