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एक सपना नयन में झलका अँधेरा छंट गया / रंजना वर्मा

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एक सपना नयन में झलका अँधेरा छँट गया।
दिनकरी चमकी कि मेघों का ये घेरा कट गया॥

आँख में हिमगिरि-शिखर हों पाँव किंतु जमीन पर
चल पड़े पग सिमट कर राहों का फेरा घट गया॥

कर रहे हस्ताक्षर हैं हम गगन के वक्ष पर
और टुकड़ों में यहाँ सारा सबेरा बंट गया॥

साँझ ने छींटे सितारे रात ने कुछ अश्रु-कण
क्या मिला किसको इसी में वक्त तेरा कट गया॥

रेत मुट्ठी भर टपकती बूँद भर है चाँदनी
अधर सूखे प्यास का जिन पर बसेरा हट गया॥