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एक सपना / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
आज रात में सपना देखा
अद्भुत एक तमाशा
गाड़ी लेकर चला ड्राइवर
खाते हुए बताशा
भूल गया वह अटरी-पटरी
वह सिग्नल भी भूला
पार कर गया प्लेटफार्म सब
तब उसका दम फूला
फिर भी रुकी न गाड़ी उसकी
एक गाँव से आई
घर तोड़े, छप्पर उजाड़कर
खंभों से टकराई
छप्पर पर बंदर बैठे थे
वे इंजन में आए
इधर-उधर कुछ पुरजे खींचे
ठोके और हिलाए
बस, इंजन रुक गया वहीं पर
और रुक गई गाड़ी
मेरा रुका मेरा सपना भी
गाड़ी बनी पहाड़ी।