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एक साज़िश मेरे सपनों में / नित्यानंद गायेन

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अब मैंने तय किया है
अपने सपनों को ढँक कर रखने का
जब-जब पहुँची उन तक मेरे सपनों की बात
उन्होंने साज़िश की
मेरे सपनों को तोड़ने की
आज मैं जान चुका हूँ
सपनों का खुलासा करना भी जुर्म है ।

मेरे सपने, जो --
पीले लहलहाते सरसों की फूलों की तरह थे,
कुछ सुबह की मीठी धूप की तरह थे,
जिन्हें देखा था मैंने खुली आँखों से ।
ये सपने मैंने देखे थे
उन माताओं के लिए जिनकी बूढ़ी आँखें
आज भी देख रही हैं
अपने बच्चों की राह
ये सपने उन बच्चों के लिए थे
कई सदियों से जिनके चेहरे पर
उदासी का कब्ज़ा है
मैंने ये सपने देखे थे
उस बूढ़े किसान के लिए
जो निराश होकर करना चाहता है आत्महत्या,
उन शहीदों के लिए जो
लड़ते रहे मजदूरों के अधिकारों के लिए ।
पर तोड़ा गया बार-बार इन सपनों को
मेरी आँखों के सामने
तब हर बार खुली ही रह गई
मेरी आँखें हताशा में ।
कोई गुनाह नहीं था
मेरे सपनों में
था केवल एक उज्जवल भविष्य
और शान्ति का एक पैगाम,
जिन्हें ख़ुशी-ख़ुशी बाँट दिया
मैंने अपने समाज के
दबे-कुचले साथियों में
सत्ता को आई एक षड्यन्त्र की 'बू'
मेरे सपनों में...।।