भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक साथ / शांति सुमन
Kavita Kosh से
एक साथ
गंगा की लहर फिर गिनें
सीढ़ियों पर बैठ धूपबाती जलाएँ
पानी पर दीप की कतार सजाएँ
मंदिर-ध्वनि हाथों में
जल भर सुनें
डाली में बहते चम्पे-से मन को
बाँधे उदास नावों में क्षण को
चाहों के सूत समय
को पकड़ बुनें
उंगली में भरें रोशनी की लकीरें
आओ, अंजुरी से जल-चम्पा चीरें
हरे-भरे दिन को हम
उमर भर गुनें