भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे
किसी झाड़ से थोड़े नीचे, किसी झाड़ से लम्बे ।
कल ऐसे चुपचाप खड़े थे जैसे बोल न जानें
किन्तु सबेरे आज बताया मुझको मेरी माँ ने -
इन्हें बोलने की तमीज है, सो भी इतना ज्यादा
नहीं मानती इनकी बोली पास-दूर की बाधा !

अभी शाम को इन्हीं तार के खंभों ने बतलाया
कल मामीजी की गोदी में नन्हा मुन्ना आया ।
और रात को उठा, हुआ तब मुझको बड़ा अचंभा -
सिर्फ बोलता नहीं, गीत भी गाता है यह खंभा !