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एक सुनहली किरण उसे भी दे दो / कीर्ति चौधरी
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एक सुनहली किरण उसे भी दे दो
भटक गया जो अंधियारे के वन में,
लेकिन जिसके मन में,
अभी शेष है चलने की अभिलाषा
एक सुनहली किरण उसे भी दे दो
मौन कर्म में निरत
बध्द पिंजर में व्याकुल
भूल गया जो
दुख जतलाने वाली भाषा
उसको भी वाणी के कुछ क्षण दे दो
तुम जो सजा रहे हो
ऊंची फुनगी पर के ऊर्ध्वमुखी
नव पल्लव पर आभा की किरनें
तुम जो जगा रहे हो
दल के दल कमलों की ऑंखों के
सब सोये सपने
तुम जो बिखराते हो भू पर
राशि राशि सोना
पथ को उद्भासित करने
एक किरण से
उसका भी माथा आलोकित कर दो
एक स्वप्न
उसके भी सोये मन में
जागृत कर दो।