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एक सुबह / प्रभात रंजन
Kavita Kosh से
रात की बारिश :
सुबह की धूप।
प्राची सीमान्त पर
रंगीन बादलों के
अनगिनत शिखर उगे दीखे
रथ को राह दी-
फिर चौंधियाने वाले
प्रकाश के पीछे
छुप रहे।
हरे-हरे पत्तों पर
किरणों की पाँखें,
तैर गईं।
झिलमिलाता गया,
सुनहरा रूप।
रात की बारिश के बाद की धूप।
गुनगुने कपूरी रंग के
उमड़ते फव्वारे में
नन्हीं चिड़ियाएँ देर तक नहाती रहीं।
नयन खुले,
सपने अनगिनत झूठे
टूट गए।
ज्यों बूंदों झूलते,
अनगिनत इन्द्रधनुष,
टूट गए।