Last modified on 31 अगस्त 2015, at 13:10

एक सुरीली शाम का जादू-1 / अनिल पुष्कर

हम जिस जलसे में बैठे हैं
हत्यारे बाँसुरी बजा रहे है
और हम -- तालियाँ ।

एक-एक कर तन्दूर में लाशें पकती हैं
मीठा गोश्त परोसा है ।
उँगलियाँ लजीज़ शोरबे में सनी हुई हैं ।
रसना पे थिरकता स्वाद उतरा रहा है
आँखों में चस्क की लड़ियाँ नाच रही हैं

और
हत्यारे-समूह, मधुर राग आलाप रहे है ।