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एक सुर मैं प्रस्ताव पास था बैरी नए-पुराणे का / राजेश दलाल

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एक सुर मैं प्रस्ताव पास था बैरी नए-पुराणे का
दिल मैं चस-चस गहरा सदमा बेटी हे तेरे जाणे का
 
काम की बात पै देखले इनकी रोया-झीखी रहै सै
एक जणे नै कहदे तै झट वो दूजे नै कहै सै
अपणी इज्जत पल्लै ना छोरी का बैठग्या भय सै
नाश तावळा जा इस घर का न्यू तै बिल्कुल तय सै
समझदारी रही धरी बुढंग की, के फायदा इसे स्याणे का
 
अकेली सूं भरे घर मैं सब खाण-खाण के साथी
ढंग की बात ना भूलकै जाणै दांत-पाड़ बकवादी
बाबू नै भी ब्योंत देख फेर आंख मिचकै ब्याह दी
कहैं सैं इसनै घरवासा यहां जेळ और अपराधी
कोए देवै ना साथ यहां पै नाथ भी हाथ हिलाणे का
 
पछताऊं ईब तेरे बचाण पै ज्यान भी जै लड़ा देती
एक-एक ग्यारहा हों सैं हम डट कै टक्कर लेती
घुट-घुट कै बतळाती मैं मन की सारी तेरे सेती
पढकै आती, आगे पीछे तै खांड-कसार भी भेती
गोद मैं बिठा खिळाती-खाती मजा बैठता खाणे का
 
इधर-उधर, ऊपर-नीचै मनै दिन-रात तूं दीखै सै
रोशन करती हिरदा मेरा दीए की बात तूं दीखै सै
मैं दबकोऊं रजाई मैं दूणी चलाती लात तूं दीखै सै
आकाश मैं देखूं - ‘बाय मम्मी’ हिलाती हाथ तूं दीखै सै
आंऊ-आऊं कह गोद मैं प्रयास करै तू आणे का
 
आगै जीत मेरी पक्की मैं गर्भ गिरावण ना दूं
प्रण-प्रतिज्ञा करती मैं हे लाडो दोबारा आ तूं
किलकारी मारकै, गोद मैं चढ़कै, कहदे हंसकै मां तूं
बच पावै ना हत्यारा ईब देखिए मेरे भी दा तूं
राजेश भी तारणा चाह्वै फर्ज तेरे उल्हाणे का