एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था
और उधर उस का लचीला गोश्त इक दीवार था
रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए
आप अपनी ज़ात से उस को बहुत इंकार था
लोग नंगा करने के दर पे थे मुझ को और मैं
बे-सरोसामानियों के नश्शे में सरशार था
मुझ में ख़ुद मेरी अदम-ए-मौजूदगी शामिल रही
वर्ना इस माहौल में जीना बहुत दुश्वार था
एक जादुई छड़ी ने मुझ को ग़ाएब कर दिया
मैं कि अल्फ़-ए-लैला के क़िस्से का अहम किरदार था