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एक सैनिक री मां ने सलाम / मनोज चारण 'कुमार'

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माँ थारी ईं वीरता नै म्हारा घणा सलाम।
थारै कानी स्युं मैं देवू इण देश नै पैगाम।।

मातभोम नै चाव घणों है, बळदाना रो आठों याम।
 पागड़ी रो मोल राखणों, भोत घणू है दोरो काम।
 मिट ज्यावै है मूळ समूलो, मिट ज्यावै कुळ रो नाम।
टूट ज्यावै है बठे राखड़ी, मिटज्या जठे सुहाग निसाण।
रण कांठले लागै बाजी, घुरै जठे घणघोर निसाण।
 किणनै याद आवै फेर मारू, किणनै सूझै प्रीत रा गाण।
मातभोम नै चाव घणों है, बळदाना रो आठों याम।१।

तड़-तड़ चालरी गोळयां जठे, धड़-धड़ धमीड़ा हुवै धड़ाम।
तोपा रा मुंह आग उगळरया, बोलै बम फेर बड़म-बड़ाम।
धम-धम-धम-धम हुवै धमीड़ा, धड़-धड़-धड़-धड़ धड़म-धड़ाम।
गड़-गड़ करता गोळा गाजै, पड़े जठे ई बणे मुसाण।
आग-धूँवै रा गोट उठे, अर मिनखपणे रो कोनी मान।
आभै माय धूँधळको छाज्या, सूरजी रो मिटज़्याव निसाण।
मातभोम नै चाव घणों है, बळदाना रो आठों याम।२।

इण भांत आग रै दरिया मांही, कूद पड़यो एक वीर जवान।
मन मै हरख, प्राण नै संकट, पण जूझै राखै कुळ री शान।
आंधी री ज्यू चाले गोळयां, पण पाछो नी सरके पाँव।
 हद भांत वीरता राखै मन मै, लाग्या अबै प्राण रा दांव।
मन मैं जणणी याद करै, अर याद आवै ममता रो ठांव।
बैनड़ री राखी याद करंता, देवै दुसम्याँ नै घण-घाव।
मातभोम नै चाव घणों है, बलदाना रो आठों याम।३।

अचाणचकै कीं चूक होयगी, आंख्या अंधेरी सी झलकाय।
एक गोळी तो लगी हाथ मै, दूजी धंसगी पैर रे माय।
फेर करयो की मन नै काठो, अडिग रह्यो अंगद रो पांव।
देखूँ तो मरदां री मरदी, दुसम्याँ नै नीं दूंला दाव।
याद करी जग जगद-भवानी, भरयो जोश मन रै माय।
मातभोम री लाज राख़स्युं, मात हमारी करज्यो साय।
मातभोम नै चाव घणों है, बळदाना रो आठों याम।४।

लोही री फेर धार बैयगी, लाग्यो हियो हबोळा खाण।
मन मैं कीं बो धार-बिचारी, बणाय लियो देह नै बाण।
लियाँ हाथ मैं गोळा चाल्यो, सामों दुसम्याँ रै बो वीर।
हथगोलै नै दियो उछालो, दुसम्याँ रा फेर उड़या शरीर।
पण चाणचकै ई आंख्या मिचगी, गोळी लागी छाती रै माय।
पड़यो वीर धरती रै ऊपर, मचग्यो अंधेरों आभै माँय।
सूरजी री फेर रुकी उगाळी, फीको पड़ गयो परभात।
कूख जायो सोयो चिता पर, सलूट दियो फेर उणनै मात।
बेटा ओजूं जे जलमै, जलम सुधारी म्हारो नाम।
मातभोम नै चाव घणों है, बळदाना रो आठों याम।५।