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एक स्त्री का प्रेम / सीमा संगसार
Kavita Kosh से
एक स्त्री को पढ़ना
गढ़ना होता है
इतिहास और संस्कृति को
उनके रीति रिवाजों
और उनके मान्यताओं को
जो हर युग म़े
भिन्न भिन्न परिवेश में
बदलती रहती है...
उनकी सीमाएँ
कभी खत्म नहीं होती
किसी नक्शे की तरह
वह एक ही खांचे में
ढाली जाती हैं
भिन्न-भिन्न परिवेश में
किसी विलुप्त प्राणी की तरह...
एक स्त्री का प्रेम
सामंती होता है
हर युग में
जिसकी परिणीति
दीवारों में चुनवाने से आरंभ
और जौहर पर खत्म होती है...
प्रेम में समर्पित स्त्री
अक्सर
शतरंज की रानी होती हैं
जिसे
शहजादे की शह के लिए
खुद को मात देना पड़ता है...