एक स्त्री का मसला / मार्गरेट एलिनॉर एटवुड / राजेश चन्द्र
स्त्री एक काँटेदार यन्त्र के भीतर
जिसकी जकड़ इर्द-गिर्द कमर के
और टाँगों के बीच
इसमें छिद्र हैं चाय छन्नी जैसे
यह है प्रदर्श
‘क‘ ।
स्त्री स्याह लबादे में एक जालीदार खिड़की के साथ
जिसके आर-पार देखा जा सके और एक
चार इँच का लकड़ी का शँकु
ठुँसा हुआ उसकी टाँगों के बीच
जिससे सम्भव न हो पाए उसका
बलात्कार
यह है प्रदर्श
‘ख‘ ।
प्रदर्श ‘ग‘ एक जवान लड़की है
घसीट कर लाई गई झाड़ी में
दाइयों के द्वारा
और तब तक गुनगुनाने को मजबूर
जब तक वे माँस को निकाल न लें खुरचकर
फिर बाँध दें उसकी जांघों को कसकर
तब तक के लिए
जब तक कि वहाँ पपड़ी न पड़ जाए
और उसे कह न दिया जाए
चंगा।
अब वह कर सकती है शादी शौक़ से ।
प्रत्येक बच्चे के जन्म के लिए
वे लगा देंगे चीरा
उसके
मुहाने पर, फिर वापस सिल देंगे उसे ।
मर्द पसन्द करते हैं कसावट वाली स्त्रियों को ।
जो मर जाती हैं
उन्हें दफ़ना दिया जाता है सावधानी से ।
अगले प्रदर्श में वह लेटी है अपनी पीठ के बल
अस्सी लोग
एक रात में
गुज़रते हैं उसके ऊपर से, प्रति घण्टे दस ।
वह टुक देखती रहती है छत की तरफ़
सुनती है
दरवाज़े का खुलना और बन्द होना ।
एक घण्टा बजता है लगातार ।
कोई नहीं जानता
वह कैसे पहुँची यहाँ ।
तुम पाओगे कि उन सबमें एक समानता है
और वह उनकी टाँगों के बीच है ।
क्या यह वही है
जिसके लिए लड़े जाते हैं तमाम युद्ध ?
शत्रु प्रदेश, लावारिस स्थान,
चोरी से दाख़िल होने के लिए,
बाड़ से घिरे हुए, अधिकृत लेकिन
पक्के तौर पर नहीं,
ये अन्धाधुन्ध चढ़ाइयों के दृश्य
आधी रात के, धर-पकड़
तथा
चिपचिपी हत्याएँ, डॉक्टरों के रबर के दस्ताने
सने हुए खून से, हाड़-माँस की निष्क्रियता,
रेला
तुम्हारे अपने ही सशँकित पराक्रम का ।
यह नहीं है कोई सँग्रहालय ।
किसने ईज़ाद किया होगा
इस प्यार शब्द का ?
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र