Last modified on 29 मई 2014, at 23:43

एक स्त्री की कर्मकथा / माया एंजलो

मुझे करनी है बच्चों की देखभाल
अभी कपड़ों को तह करना है करीने से
फ़र्श पर झाड़ू-पोंछा लगाना है
और बाज़ार से खरीद कर ले आना है खाने-पीने का सामान ।

अभी तलने को रखा है चिकन
छुटके को नहलाना-धुलाना पोंछना भी है
खाने के वक़्त
देना ही होगा सबको संग-साथ ।

अभी बाक़ी है
बगीचे की निराई-गुड़ाई
कमीज़ों पर करनी है इस्त्री
और बच्चों को पहनाना है स्कूली ड्रेस ।

काटना भी तो है इस मुए कैन को
और एक बार फिर से
बुहारना ही होगा यह झोंपड़ा
अरे ! बीमार की तीमारदारी तो रह ही गई
अभी बीनना-बटोरना है इधर-उधर बिखरे रूई के टुकड़ों को ।

धूप ! तुम मुझमें चमक भर जाओ
बारिश ! बरस जाओ मुझ पर
ओस की बूँदों ! मुझ पर हौले-हौले गिरो
और भौंहों में भर दो थोड़ी ठण्डक ।

आँधियों ! मुझे यहाँ से दूर उड़ा ले जाओ
तेज़ हवाओं के ज़ोर से धकेल दो दूर
करने दो अनन्त आकाश में तैराकी तब तक
जब तक कि आ न जाए मेरे जी को आराम ।

बर्फ़ के फाहों ! मुझ पर आहिस्ता-आहिस्ता गिरो
अपनी उजली धवल चादरें उढ़ाकर
मुझे बर्फ़ीले चुम्बन दे जाओ
और सुला दो आज रात चैन भरी नींद ।

सूरज, बारिश, झुके हुए आसमान
पर्वतों, समुद्रों, पत्तियों, पत्थरों
चमकते सितारों और दिप-दिप करते चाँद
तुम्हीं सब तो हो मेरे अपने
तुम्हीं सब तो हो मेरे हमराज़ ।

(माया एंजेलो की कविता 'वुमन वर्क' का अनुवाद)