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एक स्त्री मरी पड़ी है / शहंशाह आलम

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एक स्त्री मरी पड़ी है
वृक्षों के एकांत में

दूसरी स्त्री खोजती है सूर्योदय
अमरता की उम्मीद में चुपचाप

ढेर सारी स्त्रियां अदृश्य और अनाम
देवताओं के लिए
जल और अक्षत लिए भटकती हैं
बेचैन आत्माओं-सी यहां-वहां

अंततः पीठ खुजाती हैं
भौंचक करती हुईं
अपनी ही विधियों में।