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एक ही कंडा मिला एक ही चाकू / गगन गिल
Kavita Kosh से
एक ही कंडा मिला, एक ही चाकू
एक ही दुख छिला लिखत-लिखत
कभी आँख सूखी उसमें कभी भरे पानी
बिखरे कई काँच वहाँ चटक-चटक
पानियों के, बादलों के, सूरज के सात रंग
उन्हीं में मरे कोई सात मौतें बिना संग
जीना जी जीना अभी बहुत दिन जीना
सौ रंग अल्लाह, के देखें कुछ अपने रंग
जाओ जी जाओ कहीं दूर टहल जाओ
कभी तो भूलो रस्ता, भटक कहीं जाओ
घर ने तो यहीं रहना, पेड़ों ने कहाँ जाना
अच्छा नहीं सपनों का यूँ साँसों में जन जाना
एक ही सिर मिला एक ही नींद
आँख खुलते ही गए बिछड़-बिछड़