एगारमों सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
एगारमों सर्ग
हर पखवारें दूत एक जे लंका घूरी केॅ आबै
रावण के वै पठैलोॅ दूतें रणसंबाद बताबै
वही दूत फिन कैकसी मुख से लंका हालत जानै
युद्ध क्षेत्र वापस पहुँची लंका के हाल बखानै
है क्रम चलतें रहै निरन्तर पूरे बारोॅ साल
एक दूजे के सम्वादोॅ सें दोन्हूं ठियाँ के हाल
सम्वादोॅ के प्रथम कड़ी में जे लंका सें अैलै
वे में दोसरोॅ पुत्ररत्न के पावै मद के छेलै
धान्य मालिनी गर्भ सें पैदा होलै पुत्र अतिकाय
है संवाद सुनी केॅ रावण मन्द-मन्द मुस्काय
दोसरा कड़ी के सम्वादोॅ में कुंभकरण मद रहलै
ओकरी पत्नी सानंदिनी केॅ जुड़वा बेटा भेलै
कुम्भ निकुम्भ के जोड़ी के फिन किलकारी भरथैं
बज्रज्वाला गर्भ सें निकलै एक पत भी साथैं
है रंङ कुल में वृद्धि सुनी-सुनि रावण मन हरसाबै
रणभूमि में दूना आपनें जोश में वृद्धि पाबै
यही बीच सुत मेघनादें भी आपनोॅ होस सम्हालै
पिता राह पर बढ़ै के इच्छा अपना मन में पालै
कैकसी के गोदी में जबेॅ वें वंश कथा केॅ जानै
तेॅ कच्चे उमरोॅ में देव सें बदला लै के ठानै
यही बीच मन्दोदरी देखै मय राजा भी अैलै
नाती सुता लियौन करै कें ओकरोॅ इच्छा भेलै
कैकसी आगू कर जोड़ी करि दैत्य राज फिन बोलै
मेघनाथ के शिक्षा लेली वें अपनोॅ मुख खोलै
बोललै, समधिन बड़ी आस लै लंका हम्में अैलां
मन्दोदरी लियौनों खातिर तोरो सम्मुख भेलां
जों तोरोॅ आदेश मिलेॅ तेॅ मयपुरी लैकेॅ जाबौं
मेघनाद के शिक्षा-दीक्षा आपन्है देख कराबौं
फेनूं कैकसी अनुमति पावी मन्दोदरि हरसावै
पिता पुत्र के साथ्है हीं हौ अपनोॅ नैहर जावै
जैस्हैं राजा मयपुर पहुँचै एक टा दूत पठाबै
माया युद्ध में पारंगत एक दैत्य गुरु के बोलाबै
अस्त्र-शस्त्र धनुबाण आरो फिन गदा चलाबै बाला
एन्हों युद्ध प्रवीण गुरु जे शिक्षा देबै बाला
मेघनाद के नाना ‘मय’ भी माया युद्ध के जानै
यै लेली दोनों गुरु संगे आपना के भी सानै
दैत्य गुरु ने मय के साथें माया युद्ध सिखैलकै
नाना आरो दैत्य गुरु नें उत्तम शिक्षा देलकै
साल्है भरी में सभटा शिक्षा मेघनाद ने पाबै
केनां नभ में जाय उड़ी वेॅ खुद के वहाँ छिपाबै
अरिं जब तक हौ जग्घोॅ ढुढ़तै दोसरे ठियाँ नुकाबै
अपनो अस्त्र वहीं से फेंकी दुश्मन पर बर्षाबै
मेघनादें जबेॅ माया युद्ध संग अन्य युद्ध सिखि लेलकै
तेॅ वें अपनी माय के संगे लंकापुरी चलि देलकै
दादी ने पोता केॅ पुछलकै नाना सें की पैल्हैं?
की हौ सभ पूरा होय भेलौ यथी लेॅ तों वहाँ गेल्है?
मेघनाद सब बोललोॅ गेलै कैकसी सुनतें रहली
सभटा किस्सा सुनी कैकसी खूब मगन भै गेली
फेनू कैकसी ओर मुड़ी केॅ मेघनाद कुछ बोलै
अपनोॅ मन के बात सभ्भे टा दादी लग वें खोलै
बोललै हम्में पैलां दादी युद्ध कला के शिक्षा
आबेॅ केनां पावौं हमंे शक्तिवर्धन दीक्षा
पिता छैं इखनीं युद्ध क्षेत्र में केनां लियै हौ राय
आबेॅ दादी तोहिं करैं एकरा लेॅ कोय उपाय
बात सभेटा समझी बूझी कैकसी दूत पठावै
दैत्य गुरु आचार्य शुक्र केॅ महल में आय बोलाबै
फेनु गुरु शुक्राचार्ये ने हौ ऊपाय बतलाबै
जेकरा सें शक्तिवर्धन ओकरोॅ कर्त्ता नै पाबै
गुरु के सल्हा सुनी कैकसी विभीषणोॅ सें बूझै
फेनू यज्ञ के आयोजन ही विभीषणों केॅ सूझै
निकुम्मिला उपवन में होलै सकल यज्ञ तैय्यारी
सबसें पहिने अग्निष्टोम यज्ञोॅ के होलै पारी
है रंङ बहुसुवर्णक आरो राजसूय भी टपलै
अश्वमेध, गोभेद के साथें पाँच यज्ञ होय गेलै
जबेॅ वैष्णव के पारी भेलै अन्तिम यज्ञ जेॅ छेलै
वही समय रण जीती रावण लंका पहुंची गेलै
मेघनाद के कथा रावणें सम्वादोॅ सें जानै
पाँच बरस से कैकसीं ओकरोॅ शिक्षण-यज्ञ बखानै
है रंङ संवादोॅ के सुनि-सुनि रावण गर्व केॅ धारै
हरदम मेघनाद आकृति केॅ अन्दाजोॅ में ढारै
तीन बरस के बेटा छोड़ी हौ संग्राम उतरलै
इखनी पनरोॅ के हौ गभरू तड़तड़िया केनां होलै
शिव लिंगोॅ के करि अर्चना मन्दोरी लग गेलै
बारोॅ साल जुदाई काटी दोनों गल्लां मिललै
अंगस्पर्श होथैं दोनों ही कामातुर होय गेलै
काम में तृप्ति पाय केॅ रावण विभीषणो सें मिललै
बोललै रावण भाय विभीषण तोहे छें सन्यासी
न्याय धरम आरो रीति नीति केॅ तोहें जान्है खासी
सौसे लंका तोरहे भरोसां सौंपी हम्में गेलां
लेकिन कुछ कनफुसकी आपनोॅ कानों से हम सुनलां
अन्दर के हौ बात तेॅ कोइयो हमरा नैं बतलाबै
लागै छै कि भय के कारण मुँह नै खोलै पाबै
तोहें हौ अन्दर के बात हमरा बतलावें भाय
जेकरा सुनी केॅ हम्में आबेॅ करबेॅ कोनों ऊपाय
बोलै विभीषण सुन लेॅ भैया अन्दर के हौ बात
तोरा करतूतें दू बहिनां कानै छौं दिन रात
सुपर्णखा के पति विद्युत केॅ ताहें मारी देल्हौ
कुंभीनसीं पति मधु दैत्य केॅ जान तोहें लेॅ लैल्हौ
एक्के पिता सन्तान सभे छी दोनों छोटी बहनां
विधवा बनीं केॅ कानै दर-दर फेकी आपनों गहनां
रावण बोललै राजनीति में होथैं छै है भाय
विद्युत केॅ मारै के बिना रहलै नै कोय उपाय
अस्म नगर में दैत्य राज कालेय हार नै मानै
विद्युत बनी केॅ मित्र ओकरोॅ साथ देबै लेॅ ठानै
जबेॅ-जबॅ भी बाण चलाबौं ढाल बनी हौ आबै
हमरोॅ चाहै हार आरो राजा के जीत बताबै
कत्तो कहियै हटै लेॅ ओकरा हौ बनलै घर-फोड़ा
हमरोॅ विश्वविजय में हौ बनलै बड़का ठो रोड़ा
मधु के भी छै वही कहानी तोंही सोच विभीषण
सुपर्णखा आरो कुंभीनसी के खुशी हम्में करवै मन
ओना तेॅ दू लोक के स्वामी हम्में आबेॅ धारौं
मगर बहुत अफसोस लगै छै खुद परिवार सें हम्रौं
समझावै वै दोनों हठी केॅ सोहागिन फिन बनती
मनवांछित निज पति पावि नवजीवन लै सुख पैती
दुख के तेॅ तों बात बतैलै कुछ सुख के भी बताबेॅ
मेघनाद के यज्ञ कहाँ छै हौ जग्घोॅ देखलाबेॅ
विश्व विजय के लक्ष पुरावै लंका सें जबेॅ गेलां
सौंसेटा परिवारोॅ के जिम्मां सुत अबोध इक देलां
देखी रावण केॅ अधीर फिन निकुम्भिला लै जावै
वै उपवन के कोनां सें रावण के यज्ञ देखावै
बड़ी गौर से रावण ने सुत संगेॅ आचार्य केॅ देखै
मंत्र, आहुति यज्ञ-भाग जजमान सुतोॅ केॅ लेखै
रावण केरोॅ जिज्ञासा बढ़लै माय कैकसी देखी
एक चटाय पर बैठलीं ओकरोॅ मौन व्रतोॅ के लेखी
जिज्ञासां जैन्हैं पग बढ़लै विभिषणे ने रोकै
बोललै वैष्णव यज्ञ में कोइयों नै केखरौं केॅ टोकै
मेघनाद जजमान छै इखनी शुक्राचार्य पुरोहित
यज्ञ के अन्तिम ऋचा आहुति होय रहलोॅ छै अर्पित
यै लेॅ इखनी कभी न भैय्या यज्ञोॅ तरफ बढै़ के
पद के आहट सें मुमकिन छै बाधा-बिघ्न पड़ै के
यज्ञ समापन होतें देखी दूत पठावै विभीषण
मन्दोदरी बुलावा भेजी लावै कहै वही क्षण
शंख समापन जैन्है बजलै रावण केॅ करी आगू
विभीषणों ने मेघनाद सें कहै पिता पद लागू
मेघनाद जब पैर छुवै लेॅ रावण आगू जावै
तेॅ रावण सुत आशीष दै केॅ उर आरु कंठ लगावै
वही समय मन्दोदरी जुटि के सुत के माथोॅ चूमै
फिन सौसे परिवार कैकसी सम्मुख होय के झूमै
रावण बोललै माय तोहें अबे मौन ब्रतोॅ के तोड़ें
सभटा यज्ञ सम्पन्न होलै तों लै प्रसाद व्रत छोड़ें
व्रत तोड़ी रावण केॅ देखी लिपटी-लिपटी जाबै
बारोॅ साल के बिछुड़न सें वें त्राण तुरन्ते पाबै
यही बीच आचार्य शुक्र दक्षिणां पुरोहिती पाबै
रावण हुनके निकट पहुंचि जिज्ञासा विधि के लाबै
करि प्रणाम फिन बोलै रावण जिज्ञासा रोॅ बात
यज्ञ भाग देवें केनां पाबै जबे करै वेॅ घात
देव असुर के महाशत्रु छै हमरे अन्न केॅ खाबै
यज्ञ भाग केॅ खाबी-खाबी बल शरीर में पाबै
जिज्ञासा के शान्त करै लेॅ गुरुं रावण समझावै
यज्ञ भाग पाबी केॅ सुरें निज बल केॅ अधिक गमावै
आय तोरा बतलाबौ राजन् यज्ञ के बड़का भेद
जेकरोॅ ऋषि-मुनि बात बताबै जेकरा गाबै वेद
तखनीं तों धड़फड़ी में रहलौ युद्ध करै के शोर
एक साल यज्ञोॅ में सौंपी भागल्हौ युद्ध के ओर
तीन मास इक यज्ञ में लागै साल में होबै चार
छोॅ यज्ञोॅ के कर्त्ता ही त्रिलोक पेॅ करै बिचार
यै लेली सुरलोक पेॅ कब्जा तोरा सें नैं होतै
मेघनाद के बलें पराजित सुरपति इन्द्र केॅ करतै
है सुनाय गुरु-दक्षिणा लैकेॅ बढ़लै आश्रम ओर
कैकसी के आँखोॅ पेॅ छलकै प्रशन्नता के लोर