एनकाउंटर / कुमार मुकुल
आज फिर दुख की तसवीर देखी मैंने
एक माँ और दो बच्चे थे उसमें
एक बच्चे के हाथ में फोटू थी
एनकाउंटर हुए पिता की
यह तस्वीर स्थानीय पुलिस की बनाई थी
पुलिस तस्वीरें बना रही है
कितना क-ला-त्म-क ख़याल है यह
यूँ...पुलिस को ऐसा बनाया किसने
तस्वीर में माँ की आँखें
तलाश रही हैं आकाश
पर आकाश की तस्वीर
आ नहीं पाई है फ्रे़म में
वह माँ की आँखों में है
इस दुख को
अरेंज किया होगा फ़ोटोग्राफ़र ने
काश... वह अरेंज कर पात
सूना आकाश भी... तो
ज़्यादा कीमत मिलती उसे
तस्वीर के एक बच्चे की आँखें भी
आकाश तलाश रही हैं
पर उसका एंगेल दूसरा है
फोटू संभालते दूसरे बच्चे की आँखें
ऐसी हैं... जैसे वह
कक्षा में खड़ा अपनी स्लेट दिखा रहा हो
उस पर जो लिखा है
उसे कौन पढ़ेगा...
फोटू में पिता की
कॉलेज लाईफ़ की तस्वीर है
जिसमें भौंचक है वह
तस्वीर की स्त्री
चौखट के भीतर की तरफ़
टिककर बैठी है
एक लड़का बाहर सीढ़ियों पर है
दूसरा भीतर माँ के कुछ पीछे
चौखट पर नीचे किया गया पीला पेंट
और उस पर बने लाल फूल
ज़ाहिर कर रहे हैं
कि तस्वीर आन्ध्र प्रदेश की है
स्त्री ने लाल साड़ी लपेट रखी है
मृतक की कमीज़ सफ़ेद है
एनकाउंटर तो नक्सली भी करते हैं
पुलिस वालों का
उनके घरों से भी
ऐसी तस्वीरें निकल जाएंगी
अन्त में ये तस्वीरें ही बचती हैं
बन्दूक की नली से बनाई गई तस्वीरें
ऐसी ही होती हैं
पूरी नहीं बनतीं वें
क्योंकि एक आँख से
बनाई जाती हैं वे
और एक आँख से
पूरा आकाश नहीं दिखता
उससे बस उड़ती चिड़िया दिखती है।