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एबसर्ड कविता / महेन्द्र भटनागर
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(1)
बिल्ली रस्ता काट गयी
हँडिया कुतिया चाट गयी
औरत घर से घाट गयी
कविता, हाय ! सपाट गयी !
(2)
बिल्ली रोयी ज़ार-ज़ार
कुतिया कूदी बार-बार
औरत भटकी द्वार-द्वार
सारी-सारी तार-तार
कविता लिक्खी धार-दार !
(3)
बिल्ली-चुहिया ठाना वैर
कुतिया आयी जल में तैर
औरत निकली करने सैर
अपनी आज मनाओ ख़ैर
कविता ऐसी — सिर ना पैर !