भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एहसासे कमतरी को न यूँ दिल में पालिए / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एहसासे कमतरी को न यूँ दिल में पालिए
हिम्मत से काम लीजिये ख़ुद को सँभालिए

जो ख़ूबियाँ हैं आप में पहचानिए उन्हें
हर वक़्त ही न ख़ुद में यूँ कमियाँ निकालिए

अच्छा नहीं है रोकना बह जाने दो इन्हें
गुस्से ़ की आंच पे न यूँ आँसू उबालिए

तालाब से, न झील से हासिल हो पाएगा
जो रत्न चाहिए तो समंदर खँगालिए

‘अज्ञात’ कुछ भी काम असंभव नहीं यहाँ
सूईं न हो तो काँटे से काँटा निकालिए