एहसासे कमतरी को न यूँ दिल में पालिए
हिम्मत से काम लीजिये ख़ुद को सँभालिए
जो ख़ूबियाँ हैं आप में पहचानिए उन्हें
हर वक़्त ही न ख़ुद में यूँ कमियाँ निकालिए
अच्छा नहीं है रोकना बह जाने दो इन्हें
गुस्से ़ की आंच पे न यूँ आँसू उबालिए
तालाब से, न झील से हासिल हो पाएगा
जो रत्न चाहिए तो समंदर खँगालिए
‘अज्ञात’ कुछ भी काम असंभव नहीं यहाँ
सूईं न हो तो काँटे से काँटा निकालिए