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एहसास-ए-जियाँ चैन से सोने नहीं देता / प्रकाश फ़िकरी
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एहसास-ए-जियाँ चैन से सोने नहीं देता
रोना भी अगर चाहूँ तो रोने नहीं देता
साहिल की निगाहों में कोई दर्द है ऐसा
मौजों को मेरी नाव डुबोने नहीं देता
क्या जानिए किस बात पे दुश्मन हुआ मौसम
सर-सब्ज़ किसी शाख को होनी नहीं देता
लर्ज़ां है किसी खौफ से जो शाम का चेहरा
आँखों में कोई ख़्वाब पिरोने नहीं देता
इक ज़हर सुलगता है रग-ए-जाँ जो ‘फिक्री’
इक पल भी तेरी याद में खोने नहीं देता