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एहसास / शशि सहगल

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हम
कितना समझ पाए हैं एक-दूसरे को,
आज भी
यह प्रश्न मेरे सामने है।
वर्षों पहले कितना सहज था
यह विश्वास कर लेना
कि शेष बाकी कुछ भी नहीं रहा जानना
आज हम
वर्षों बाद
समय के इस मोड़ पर
बहुत सतर्क हो गए हैं
गलती से घबराकर
कुछ गलत ही कर बैठते हैं
तक हम
एक-दूसरे से नज़रें बचा
 ठहाके लगाते हैं दोस्तों के बीच
स्वांग भरते हैं खुश होने का
भीड़ में
हम-और अधिक निकट आ जाते हैं।