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एहि ठाम सुन्नरि सीता औती / कालीकान्त झा ‘बूच’

एहि ठाम सुन्नरि सीता औती !
हे महराज करह रखवारी
विपतिक काल मुकुट नहि चाही
त्यागः आग दण्ड सिंहासन
लगबह खेतहि मे योगासन
रहितो देह विदेह बनह हे
तोरे सुयश सुगीता गौती .
ह'र लाधि क' पकरह पयना
आइ आड़ि पैर ठाढ़ सुनयना
हे ज्ञानी भक्तिक पद पावह
जुगुति जुगुति सं फाड़ चलाबह
पाओत सब विश्राम आब हे
रामक प्राण पिरिता औती
आइ साम्य केर ढोंग अनेरे
नृप गृह सरिस सदन सव केरे
क' नहि सकत किओ प्रयोग जे
देखा देलक तिरहुतक योग से
फाटि जाह तोँ भूमि हुलसि क'
जेहि ठाम परम पुनीता औती