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ए कनिया ! / चन्द्रमणि
Kavita Kosh से
ए कनिया जखने देलियै
घोघ तऽर सँ हुलकी
अहाँ बाजू ने बाजू
देखि गेलौं हम बुलकी।
इजोरिया नीक लगैये
मेघ सन घोघ ने तानू
उघारू बदन चानकें
कने तऽ हमरो मानू
अहाँकेर नैन मारलक तानि कों ढमे सुलफी। अहाँ.....
लचकिते डाँरक गतिसँ
जुलुम कऽ दैये पायल
कतेक उत्साही मनकें
तुरत कऽ दैये घायल
अहाँकेर चालि देखिकऽ मोन मारैये दुलकी। अहाँ....
अहाँ छी धवन चाननी
कतऽ हम कारी कारी
अहाँ तऽ मृगनैनी छी
आ‘ हम कनडेरिये ताकी
जनैछी हम अरूआयल ओल अहाँ की कुलफी। अहाँ....