भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ए हमारे प्रभु तुम गती अलख अती / लछिमी सखी
Kavita Kosh से
ए हमारे प्रभु तुम गती अलख अती।
रोटी पर नुन जुरत नहीं जाको, लाखन बरत बती।।
बड़-बड़ सीध गीध होइ गइलन, अगती पावत गती।
अइसन गढ़ कंचन पर लंका, रहेब ना एको रती।।
मांझ दुआरी कंस पछारी, छनहीं में प्रान हती।
गरब प्रहारी असुर संहारी, दुखित रहेउ धरती।।
राजा राज तजि नाम तुहारे, सुमिरत जोग जती।
जे जे तुमको जानि बिसारेउ, ताकर कवन गती।।
लछिमी सखी अवलम्ब तुम्हारो, एगो तिरथ बरती।
निसि दिन हरेत पंथ तिहारो, बिरह अनल जरती।।