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ऐंगनाहि रिमझिम बसहर सूनो भेलै / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेटी की विदाई के समय उसके वियोग में माँ का दुःखी होना स्वाभाविक है। जिस बेटी को उसने पाल-पोसकर इतना बड़ा किया, वह आज उसे छोड़कर पराई हो रही है। वियोगजन्य क्रोध में माँ इतना कह देती है- ‘अगर मेरी बेटी ससुराल चली जायगी, तो मैं जहर खाकर मर जाऊँगी। अगर मैं जानती कि यह दूसरे की हो जायगी, तो जब यह गर्भ में थी, उसी समय जहरीली चीजें खा लेती, जिससे मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता।’ जो बेटी, घर का एक अंग बनी हुई थी और घर के कामों में माँ की हमेशा सहायता किया करती थी, वह आज उसे छोड़कर जा रही है!

ऐंगनाहिं<ref>आँगन में</ref> रिमझिम बसहर<ref>वास घर; निवास का घर</ref> सूनो भेलै, कोहबर देखि के हिया साले हे।
जखनि<ref>जब</ref> जाइति ससुरारी मोरी धिया, मरबो हम माहुर खाइ हे॥1॥
एतेॅ हम जानतेॅ धिया होइति परारी<ref>परायी; दूसरे की</ref>, खाइतौं मरीच पचास हे।
आक धतूरो लै पास सुतवतौं, छूटि जैतौं धिया के संताप हे॥2॥
लेहो हे भौजो घरअ घरुअरिया<ref>घर के कामकाज, गृहकार्य</ref> अम्माँ सूते निचिंत हे।
जेकरि भरलि सीता सेहे लेने जाय, माय बाप रहल लजाय हे॥3॥

शब्दार्थ
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