बेटी की विदाई के समय उसकी माँ का वेदना-जनित रोष इस गीत में प्रकट हुआ है। वियोगजनित दुःख से दुःखी हो माँ कहती है- ‘अगर मैं पहले जानती कि बेटी इतना दुलार-प्यार कराकर अंत में दूसरे के घ्ज्ञर चली जायगी तो उसे मैं प्रारंभ में ही जहर दे देती,साथ ही अपने भी खाकर जीवन से मुक्त हो जाती, जिससे यह दिन देखने का अवसर नहीं मिलता। आज यह अपनी सारी स्मृतियों को छोड़ ससुराल जा रही है!’
इस गीत पर कुछ कुछ बँगला का प्रभाव है, क्योंकि यह गीत बिहार और बँगाल के सीमाक्षेत्र से प्राप्त हुआ है।
ऐंगनाहिं<ref>आँगन में</ref> रिमिझिमि सासु, बासा घरअ<ref>निवास-घर</ref> भेलअ सून।
कोहबर देखि मोर, हियअ<ref>हृदय में</ref> सालै छै॥1॥
जोगँ<ref>अगर</ref> हमं जानिताँ<ref>जानती</ref>, धिया हैती<ref>होगी</ref> परघरिया<ref>दूसरे के घर की</ref>।
सहर सेॅ हमें मोहुर<ref>माहुर; जहर; विष</ref> मँगैताँ, धिया के खिलाइताँ।
आपनहो खाइताँ, छुटि जैतअ दुनियाँ के संताप॥2॥
सुपती मउनियाँ गे बेटी, बासा घरअ रहलअ।
खेलबें बेटी जैछा<ref>जा रही हो</ref> ससुरार॥3॥