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ऐतराज / वीरू सोनकर
Kavita Kosh से
मेरे चलने के तरीके पर, उन्हें ऐतराज है
मैं जिस टोन में बात करता हूँ, उस पर ऐतराज है
मैं यहाँ-वहाँ फिरता हूँ, मेरे कहीं न टिकने पर ऐतराज है
मेरे गंदे जूते, मेरी डिग्रियां और मेरी कविताओ पर भारी ऐतराज है
मैं कहता हूँ आप मित्र है मेरे
उन्हें मेरे मित्र होने पर ऐतराज है,
दरअसल वह सजग रहे और मैं बेपरवाह
उन्हें मेरी बेपरवाही, और खुद के सजग होने पर ऐतराज है