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ऐनाहिते बिसनाईत / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
ऐनाहिते बिसनाईत कहिया तक जिनगी बितएबऽ।
धरती पर अएबऽ एकदिन त तू बड़ा पछतएबऽ॥
सोचइत हतऽ उमीर एनाहिते कटईत जाएत।
दोसर के आस ध के केतना कदम चल पएबऽ॥
कोनो तोरा कोन जतन से केना के समझाएत।
खएवऽ ठोकर जव्भे त अपने-आप संभल अएबऽ॥
खुद के बिसार के कोई कहिया तक जी पाएल।
झांक ल बस दिल के भीतर अपने सब समझ जएबऽ॥
धुने में खोजइत हतऽ केने हए अप्पन मकान।
तनी छंटे द तू ई धुन के त सबकुछ निखरल पएबऽ॥