भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐब औरों में गिन रहा है वो / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
ऐब औरों में गिन रहा है वो
उसको लगता है की ख़ुदा है वो
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा है वो
मैंने माँगा था उससे हक़ अपना
बस इसी बात पर खफ़ा है वो
पत्थरों के शहर में ज़िन्दा है
लोग कहते हैं आइना है वो
उसकी वो ख़ामोशी बताती है
मेरे दुश्मन से जा मिला है वो