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ऐरे मनुआ खुद कों तू का समझत है / मंगलेश
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					ऐरे मनुआ खुद कों तू का समझत है। 
साँस-साँस बृसभान-लली की बदौलत है॥
पल-पल छिन-छिन काहे कों तू रोबत है। 
"बिरह-बेदना ब्रिजबासिन की दौलत है" ।।
तेरौ मेरौ करते भए बरबाद न कर।  
जीबन तौ जीबनदाता की अमानत है॥
जा दौलत कों तेरे संग नहीं जानों। 
ऐसी दौलत कौं तू काहे तौलत है॥
	
	