भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐरे मनुआ खुद कों तू का समझत है / मंगलेश
Kavita Kosh से
ऐरे मनुआ खुद कों तू का समझत है।
साँस-साँस बृसभान-लली की बदौलत है॥
पल-पल छिन-छिन काहे कों तू रोबत है।
"बिरह-बेदना ब्रिजबासिन की दौलत है" ।।
तेरौ मेरौ करते भए बरबाद न कर।
जीबन तौ जीबनदाता की अमानत है॥
जा दौलत कों तेरे संग नहीं जानों।
ऐसी दौलत कौं तू काहे तौलत है॥