भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐलखी कान्हा / पंडित जगन्नाथ चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
आवै छथीं एगो बुतरू मटकू धैलें ।
पीताम्बर के भगवा पिन्हलें हाथें बंसी लेलें ।।
सभे गोरखिया पाछू दौगलि आवै धूर उड़ैलें ।
गाय चरैलें, दूध दुहैलें, चुकढ़ी केॅ लटकैलें ।।
जगन्नाथ घर ऐलखी कान्हा रसें-रसें मुस्कैलै ।