ऐलो छै अगहन संग / मुकेश कुमार यादव
नया खुशी, नया उमंग, ऐलो छै अगहन संग।
अन-धन से भरलो कोठी, भरलो खेत-खलिहान।
मौज मनाय छै गांव-शहर, देखो सांझ-विहान।
की बूढ़ा, की बच्चा, सब रो बदली गेलै रंग।
नया खुशी, नया उमंग, ऐलो छै अगहन संग।
चेहरा सबके लाल गुलाबी, होठ कली मुस्कान।
दोनों प्राणी झूमी-झूमी, काटै जखनी धान।
पूरबा पछिया संग बहै, खेलै जल तरंग।
नया खुशी, नया उमंग, ऐलो छै अगहन संग।
गन्ना के छै अलगे शान, अलगे हेकरो बथान।
रसिया, गुड़ जे बनाबो, सबके अलग पहचान।
खैले पीले साथ जाय छै, साथ जाय छै सत्संग।
नया खुशी, नया उमंग, ऐलो छै अगहन संग।
करुणा के अवतार माता, घर-घर जखनी पधारै।
पावन पवित्र ऋतु हेमंत, माह अगहन विचारै।
प्रेम से बोलै जय शिवशंकर, जय-जय-जय बजरंग।
नया खुशी, नया उमंग, ऐलो छै अगहन संग।