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ऐसा क्यों होता है / आनंद कुमार द्विवेदी
Kavita Kosh से
ठीक उसी समय
क्यों होती हैं ढेर सारी बातें तुम से
जब, कहने को कुछ नही होता
एक शब्द भी नहीं,
मौन इतना मुखर क्यों होता है,
ठीक उसी समय
क्यों होते हो तुम इतने पास
जब, दुनिया में
खुद से ज्यादा अकेला कोई नहीं होता
तन्हाई इतनी अपनी क्यों होती है
ठीक उसी समय
क्यों हो जाते तुम इतना बेगाने
जब, मन बुनने लगता है
सपनों की एक चटाई
सपने इतने बैरी क्यों होते हैं
ठीक उसी समय
आँख क्यों छलक जाती है
जब, पास से गुजरने वाला होता है
खुशियों का कोई कारवाँ
आँसू इतने ईर्ष्यालु क्यों होते हैं
ठीक उसी समय
क्यों पता चलती है अपनी कमजोरी
जब, हिम्मत करो जरा मजबूत होने की
खुद को धोखा देना
इतना आसान क्योँ होता है