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ऐसा क्यों होता है / जयप्रकाश कर्दम

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खून कभी जलता है कभी जलाता है
कभी खौलता है कभी सूख जाता है
और कभी पानी बन जाता है
कभी आंखों में उतर आता है खून
कभी आंखों से बरसने लगता है
कभी खून के आंसू रोता है आदमी
कभी खून के घूंट पीकर रह जाता है
अपना हो जाता है कभी किसी गैर का खून
कभी अपना ही खून अपना नहीं होता
कोई बेवजह बहाता है खून
कोई खून के अभाव में मर जाता है
भिन्न होते हैं गुण-धर्म
जब खून शरीर के अंदर होता है
सवर्ण-अवर्ण, सछूत-अछूत
न जाने कितने रंगों में बंटा होता है
शरीर से बाहर आता है तो
सब का खून एक जैसा लाल होता है
ऐसा क्यों होता है?